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कैसी ये ज़िंदगी है जिस की चाहत थी Poetry... shayari

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 कैसी ये ज़िंदगी है जिस की चाहत थी Poetry... shayari  कैसी ये ज़िंदगी है जिस की चाहत थी वो मिली नहीं सपने चूर चूर तुझे देखकर भूली हुई कहानी याद आयी  भरी महफिल में तू मुझे ही ताकते नज़र आयी भरी महफिल में तू मुझे ही ताकते नज़र आयी क्या कहे इसे इश्क का सुरूर  अभी भी वो आग सुलग सुलग कर जल रही है सुलग सुलग कर जल रही है कैसी ये ज़िंदगी है जिस की चाहत थी वो मिली नहीं सपने चूर चूर जाने क्यू उनकी आंखे उदास ही नज़र आती है  जाने क्यू उनकी आंखे उदास ही नज़र आती है  किसी की इंतज़ार में डूबी है  रास्ते देखो कैसे बदल गए पर मंज़िल तो अधूरी थी कितने मौसम बदल गए  फिर भी वादे नहीं बदले फिर भी वादे नहीं बदले कैसी ये ज़िंदगी है जिस की चाहत थी वो मिली नहीं सपने चूर चूर ये लगन मोहब्बत की ये आरज़ू प्यार की  कैसे कहू दीवाना ये तेरा दीवाना हो गया था दूरी तुझ से बड़ी मुश्किल हो गई जिया में किस तरह से पूछो मुझ से जिया में किस तरह से पूछो मुझ से बस खयाल तेरा आता था और हम बेचैन  तेरा दीदार ही मेरा सुकून था कैसी ये ज़िंदगी है जिस की चाहत थी वो मिली नहीं सपने चूर चूर र...