Poetry…अब आसु ही साथी है

Poetry…अब आसु ही साथी है अब ये ही मुकद्दर है ab aasu hee saathee hai ab ye hee mukaddar hai.... poetry अब आसु ही साथी है अब ये ही मुकद्दर है अब आसु ही साथी है अब ये ही मुकद्दर है दूर जाना चाहता हु रूठकर नहीं तुझे खुश देखना चाहता हु पता है मुझे दर्द होगा तेरी याद ज़रूर सताएगी फिर भी तुझे भूलना चाहता हु पता है तुझ से अब मिलन होगा नहीं फिर भी कोई गम नहीं कभी कभी फैसले जो हम ना चाहे वो भी लेना ज़रूरी होता है अब आसु ही साथी है अब ये ही मुकद्दर है कोई बात नहीं आज तेरा हाथ मेरे हाथों से छूट रहा है देखो कैसी मजबूरी है पर तेरी ख्वाइश जो पूरी हो रही है अब आसु ही साथी है अब ये ही मुकद्दर है जब हम मिलते थे तब बहारे सजी रहती थी तेरी बाहों मे मेरी जैसी दुनिया बसती थी कितना खुश था मैं बस तेरा था तू भी तो वफा से भरी बाते किया करती थी अब आसु ही साथी है अब ये ही मुकद्दर है ज़िंदगी को तू बस इश्क से सजाती थी जाने क्या हुआ तू क्यू बदल गयी अब आसु ही साथी है अब ये ही मुकद्दर है दूरी ये दूरी बोहत बढ़ गयी मेरे वफा पर आच आ गयी अब हमारी भूली हुई क...