संदेश

जून 28, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कैसी सोच है…. poetry || Kavita

चित्र
 कैसी सोच है…. poetry || Kavita  कैसी सोच है  आखों में बस उम्मीद ही उम्मीद है जहां भी देखू  जाने कैसी तलाश है थोड़े वक्त के बाद बदल जाता हे पहले का वक्त  तुम तलाशने लगते हो उसे  जिसे कभी संभलकर रखा नहीं होने लगा मुझे गुमान  अभी चला हु में उसी राह से  कभी हम रोज जाया करते थे उस गली से वो चेहरे अब नज़र नहीं आ रहे हे या धुंधली पड़ गयी हैं वो यादें कैसी सोच है  आखों में बस उम्मीद ही उम्मीद है जहां भी देखू  जाने कैसी तलाश है तू नहीं है तो परछाई भी जाने कहा खो गई मुझे मिला बस भूले हुए यादों का गुलदस्ता छूना चाहता हू फिर उन पलो को पता हे मुझे वो मिलेंगे नहीं  कैसी सोच है  आखों में बस उम्मीद ही उम्मीद है जहां भी देखू  जाने कैसी तलाश है फिर भी कोशिश है इस ना समझ दीवाने की गुज़रता हुआ ये सफर लगता हे कभी ठहर जाते हे तो कभी चले जाते है कैसी सोच है  आखों में बस उम्मीद ही उम्मीद है जहां भी देखू  जाने कैसी तलाश है वैसे तो सागर किनारे चलते चलते   बन जाते हैं निशान पर वो कुछ पलो के बाद मिट जाते हैं  एक मौज ऐसी आती ...