कैसी सोच है…. poetry || Kavita
कैसी सोच है…. poetry || Kavita
कैसी सोच है
आखों में बस उम्मीद ही उम्मीद है जहां भी देखू
जाने कैसी तलाश है
थोड़े वक्त के बाद बदल जाता हे पहले का वक्त
तुम तलाशने लगते हो उसे
जिसे कभी संभलकर रखा नहीं
होने लगा मुझे गुमान
अभी चला हु में उसी राह से
कभी हम रोज जाया करते थे उस गली से
वो चेहरे अब नज़र नहीं आ रहे हे
या धुंधली पड़ गयी हैं वो यादें
कैसी सोच है
आखों में बस उम्मीद ही उम्मीद है जहां भी देखू
जाने कैसी तलाश है
तू नहीं है तो परछाई भी जाने कहा खो गई
मुझे मिला बस भूले हुए यादों का गुलदस्ता
छूना चाहता हू फिर उन पलो को
पता हे मुझे वो मिलेंगे नहीं
कैसी सोच है
आखों में बस उम्मीद ही उम्मीद है जहां भी देखू
जाने कैसी तलाश है
फिर भी कोशिश है इस ना समझ दीवाने की
गुज़रता हुआ ये सफर लगता हे कभी
ठहर जाते हे तो कभी चले जाते है
कैसी सोच है
आखों में बस उम्मीद ही उम्मीद है जहां भी देखू
जाने कैसी तलाश है
वैसे तो सागर किनारे चलते चलते
बन जाते हैं निशान पर वो
कुछ पलो के बाद मिट जाते हैं
एक मौज ऐसी आती है
सब पुराना मिटा कर
फिर से नया बनकर तैयार हो जाता है
कैसी सोच है
आखों में बस उम्मीद ही उम्मीद है जहां भी देखू
जाने कैसी तलाश है
Poem by Sanjay T
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