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हवा


ठंड और गर्म का ये कैसा येहासा है

ये तो हवा हवा है ज़िसका मज़ा और है 

तुम उसे कहाँ ढूढ़ते हो ये तो ना यह है या वहा है

हाथ में न आये , आँखो से ना दिखें

ये ना जाने महज़ब कि दीवार ,ना सरहद का करवा

ईसका  का नही है मोल ये तो हे अनमोल

कूच हो रहा हे जो इसमें है दोष

प्रदुषण जिसे कहते है वो हो रहा है

हवा को ना करो  दूषित  ये है जान से भी बढ़कर

तड़पना ना पड़े इसके लिये काम ना हो इसका स्तर

खुशबू भी लाती है मन को भी लुभाती है 

हो ना हो हवा ज़िन्दगी बनती है 

यही तो है खुदरतका खेल हवा है सब से बेमेसला ST 

                                          by Sanjay Teli

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