शायरी ये सफर....Poetry on Rakshabandhan||shayari Rakshabandhan
Poetry on Rakshabandhan||shayari Rakshabandhan
नोक झोक वो बचपन की दिन से रात चलती थी
उस को कितना ज़्यादा मिला ये हिसाब होता था
कभी कभी मुझे मां बाप के डाट से बचाती थी
ऐसी प्यारी बहन है
छेड़ कर उसे रुलाना इसे मुझे मज़ा आता था
अगर ज्यादा कुछ हुआ तो बुरा भी लगता था
सुबह जल्दी जाग ने के लिए भी
हम दोनो के बीच ऐतराज़ होता था
तू तू मैं हर पल होती थी
पढ़ाई मे वो कभी आगे निकल जाती थी
वैसे मै भी कम नही था
उम्र तो बढ़ने के लिए होती है
बचपन की सीमा कब पार हुई
पता ही नही चला
देखो काम करने ज़िंदगी लग गयी
छुटने लगा बचपन क्या करे मजबूरी है
चल रहा था सफर जीवन का
पर भाई बहन का रिश्ता तो था प्यार भरा
पर वक्त का तकाजा तो देखो खो गए थे
अपने ही दुनिया में
एक मोड ऐसा आता है
बहन के जीवन पर और किसी का हक हो जाता है
अपने संसार में गुम हो जाती है
पर वो नोकझोक हमेशा दिल के करीब रहती है.
Shayari by Sanjay T
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