ज़िंदगी पर कविता || poem on Life

ज़िंदगी पर कविता 




 ठंडी हवाएं मन गुनगुना ता है

कहता है चलो ढूंढे नए रास्ते

मौसम का अजीब सा फलसबा है 

ओस में डुबा सारा ज़माना है

ऊन के कपड़े डटकर तैयार है

पहनने को लोग बेकरार है

आते है दूर से पंछी ये जाबाज़ 

हमेशा का ठिकाना है

लगता उन्हें घर का एहसास 

आग की आच पर तप रहे बदन

चादर ओढ़े घूम रहे लोग

चाय के प्याले के साथ दिन गुज़रता है 

पानी की बोतल वैसी ही भरी नज़र आती हैं 

ऐसी ही चलती रहेगी ज़िंदगी.

            .   Poem by Sanjay T ...


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