thikaana mera kaha hogapoetry .. Kavita || poetry

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 Kavita || poetry 


ठिकाना मेरा कहा होगा

कौन है अपना कौन है बेगाना ज़िंदगी तू बत

ठिकाना मेरा कहा होगा

कौन है अपना कौन है बेगाना ज़िंदगी तू बता

तू सोचता होगा ये क्यू हो रहा है 

जाने इस में किस का कसूर है 

जाने कैसी तलाश है खोया क्या है क्या पता

जब तू चला था  इस सफर में सोचा होगा 

मंज़िल तेरी कहा तक होगी 

ठिकाना मेरा कहा होगा

कौन है अपना कौन है बेगाना ज़िंदगी तू बता

अब ये कुछ नया नया लग रहा है 

इस की कभी भनक तक ना लगी

तू खो जाएगा इस पल में

तुझे कैसा लगे क्या पता

ये उलझन भी अजीब सी है 

सुलझने का नाम नहीं लेता 

ठिकाना मेरा कहा होगा

कौन है अपना कौन है बेगाना ज़िंदगी तू बता

बात बड़ी गहरी है तू उस में डूबा है 

काहा तक जाएगी ये खबर कैसे कहू

रास्ता भी नहीं मिल रहा है इस भटके हुए  राह का

बस हम निकल जाए इस लंबे से सफर से

ठिकाना मेरा कहा होगा

कौन है अपना कौन है बेगाना ज़िंदगी तू बता

कही मिले सुकून के पल तो 

आंखे बंद करके कुछ देर के लिए 

खो जाए अपने सपनो मे.

ठिकाना मेरा कहा होगा

कौन है अपना कौन है बेगाना ज़िंदगी तू बता.

Poem by Sanjay T 


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