Hindi poem, Hindi kavita,हिंदी कविता.........मेरा गाव


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मेरा गाव


मेरा गाव कही खोगया 

जहाँ  मीठी  के घर हुआ करते थे वह इमारते बनगई,

जहाँ आम के पेड़ थे वहां मोबाइल के टावर बनगये,

छोटे आडे टेड़े रास्ते के जगह हाइवे बनगये

नदिया ज़ाह खिलखीलाती थी वहां डैम बनगये

रातो में हम ज़ूगुनु के साथ खेलते थे

 अभी तो एलईडी को देखते है

दिन रात खेल ने में दँग थे

अभी तो मोबाईल के साथ गूम है

  मेरा गाव कही खोगए ...............

मेले में जाने के लिऐ पहले बेचने थे

अब तो मॉल में जाने के लिये उतावाले होते है

डाकिया कि राह पहले तकते थे 

अब तो ईमेल से काम होता है 

पेड़े के नीचे चौपाल पर बाते करते बुजुर्ग जाने कहाँ गये 

 दादा दादी के साथ हम चलते थे

 अब तो वो आश्रम में दम लेते है

   लगता है शहरों के भूल भूल राहो में  मेरा गाव कही खोगए ...st

                                                                         by Sanjay Teli

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