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           बढ़ते कदम.......


कदम बढ़ने लगे कामियाबी के और

थे अधुरे सपने हुये पूरे ,

दौड़ यैसी लगी चली मंज़िल की और

थके ना ये रुकें ना ये, हो कितनी राह कठीन

बढ़ते रहना है हो डगर कितनी भी दूर

सोच ना बदले मन ना बहके ,हम या तुम इस मे ना उलझें

हैरान हूं में कितना सँभलना भी मुस्किल है

आँखो में आशु है ,पर उसे बहते देखना है

उजले की किरण देखी है हमेने

उसे सूरज की तरह चमकना है

डर कीस बात का होगा मुझे

कटे चुंबना तो आम बात है

फिर भी कदम बढेगें......st
                                By Sanjay Teli



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