अकेले का सफ़र ......... Hindi poem,Hindi kavita,हिंदी कविता,Hindi kavitayen
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अकेले का सफ़र
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है मेरे अकेले का सफ़र कोई नहीं है
है तो बस परछाई का अनछुवा साथ
है तो बस परछाई का अनछुवा साथ
मेंहसुस होता है तेरा साथ पर बिखरा हुआ एहसास
होता तू अगर कितना दिलनशी दिलकश तो ये प्यार का सफ़र कहलाते
गलत था में या वक्त का था तकाज़ा फासला जो छूटा तेरा साथ
कहा ढूंडू तुझे नज़र आती नहीं दूर तक कोई आस
कहा ढूंडू तुझे नज़र आती नहीं दूर तक कोई आस
देता तू कोई तेरे होने की निशानी
सोचता हु मै कैसे होता होगा है सफ़र अकेले का
आज महसूस होता है जो मै चला हूँ अकेले
पर गम इस बात का हे जो तू नहीं है मेरे साथ
पर गम इस बात का हे जो तू नहीं है मेरे साथ
क्या मै सोचु बात बन जाएगी जो
होगा क्या सफ़र तेरे साथ या
है मेरे अकेले का सफ़र जो दूर तक कोई नहीं है
poem by Sanjay T
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